सोचिए अगर आपकी बेटी अकेली रहती है, नौकरी करती है या पढ़ाई — तो क्या उसे अपने माता-पिता की सहमति के बिना कुछ करने का हक है?
इस सवाल का जवाब अब हाई कोर्ट ने बड़ी सटीकता से दे दिया है। ये फैसला ना सिर्फ कुंवारी लड़कियों के लिए बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी एक अलार्म की तरह है।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में एक केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साफ कहा कि कुंवारी बालिग लड़कियों को अपने जीवन से जुड़े फैसले लेने का पूरा अधिकार है, चाहे वो नौकरी हो, पढ़ाई हो या कहीं रहने का निर्णय।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई लड़की बालिग है, तो उसे अपने परिवार की मर्जी से बंधे रहने की जरूरत नहीं। वह कानूनन आज़ाद है और कोई भी उसे जबरदस्ती रोक नहीं सकता।
क्या बोले जज साहब?
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा: “भारत का संविधान हर बालिग व्यक्ति को स्वतंत्रता देता है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला।”
इससे साफ है कि लड़कियों को सिर्फ इसलिए कंट्रोल नहीं किया जा सकता क्योंकि वो ‘बेटी’ हैं।
पेरेंट्स के लिए बड़ा संदेश
अगर आपकी बेटी बालिग और अविवाहित है, तो यह जरूरी है कि आप उसे अधिकारों की जानकारी दें — न कि रोक-टोक।
अक्सर देखा जाता है कि लड़कियों की स्वतंत्रता को ‘इज्जत’ या ‘परिवार के डर’ के नाम पर दबा दिया जाता है, जो पूरी तरह से कानूनी रूप से गलत है।
इस फैसले से क्या बदल जाएगा?
- लड़कियों को अपने निर्णय लेने में कानूनी सुरक्षा मिलेगी।
- अभिभावकों को बेटियों की स्वतंत्रता को समझना होगा।
- पुलिस को भी अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना होगा।
आप क्या सोचते हैं?
क्या ये फैसला भारतीय समाज के लिए जरूरी था? क्या इससे बेटियों की आज़ादी और भी मजबूत होगी? अपनी राय कमेंट में जरूर दें।
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